स्वास्थ्य सेवा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को एक क्रांतिकारी तकनीक के रूप में देखा जा रहा है, जो बीमारियों का पता लगाने और इलाज में डॉक्टरों की मदद कर रही है। खासकर, कोलन कैंसर की जांच के लिए की जाने वाली कोलोनोस्कोपी में एआई के खतरे इस्तेमाल से पॉलीप्स (कैंसर-पूर्व ट्यूमर) को खोजने की दर में 50% तक की कमी आई है। लेकिन एक नए अध्ययन ने इस चमकती तस्वीर का एक दूसरा, चिंताजनक पहलू भी उजागर किया है। क्या AI पर बढ़ती निर्भरता अनुभवी डॉक्टरों के कौशल को ही खत्म कर रही है?
कोलोनोस्कोपी में एआई के खतरे वाला खुलासा: क्या AI डॉक्टरों के कौशल को कुंद कर रहा है?
‘द लैंसेट गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी’ जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने चिकित्सा जगत में एक नई बहस छेड़ दी है। पोलैंड और स्वीडन सहित कई यूरोपीय देशों के शोधकर्ताओं ने 1,400 से अधिक कोलोनोस्कोपी प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया।
इस अध्ययन में पाया गया कि जो अनुभवी डॉक्टर लगातार तीन महीने तक AI की सहायता से कोलोनोस्कोपी कर रहे थे, जब उन्होंने बिना AI के पारंपरिक तरीके से जांच की, तो उनकी एडेनोमा (एक प्रकार का ट्यूमर) पहचानने की क्षमता में 20% की गिरावट आई। AI के इस्तेमाल से पहले उनकी पहचान दर 28.4% थी, जो बाद में घटकर 22.4% रह गई।

शोधकर्ता मार्सिन रोमान्त्रिक ने कहा, “हमारे परिणाम चिंताजनक हैं, यह देखते हुए कि चिकित्सा में एआई को तेजी से अपनाया जा रहा है। हमें विभिन्न चिकित्सा क्षेत्रों में स्वास्थ्य पेशेवरों के कौशल पर एआई के प्रभाव के बारे में और अधिक शोध की आवश्यकता है।” यह खोज इस गंभीर सवाल को जन्म देती है कि क्या तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता मानव विशेषज्ञता के लिए खतरा बन सकती है।
सिक्के का दूसरा पहलू: AI क्यों है एक वरदान?
एक तरफ जहां कौशल में कमी की चिंता है, वहीं दूसरी ओर AI-सहायता प्राप्त कोलोनोस्कोपी के जबरदस्त फायदे भी हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
- चूक की दर में 50% की कमी: मेयो क्लिनिक के एक अध्ययन के अनुसार, AI का उपयोग कोलोरेक्टल नियोप्लासिया (असामान्य ऊतक वृद्धि) की “मिस रेट” यानी जांच के दौरान चूक जाने की दर को 50% तक कम कर देता है। AI एक “दूसरी आंख” की तरह काम करता है, जो उन छोटे पॉलीप्स को भी पकड़ लेता है जो इंसानी आंखों से छूट सकते हैं।
- कैंसर की रोकथाम में मददगार: कोलोनोस्कोपी का मुख्य उद्देश्य कैंसर बनने से पहले ही पॉलीप्स का पता लगाकर उन्हें हटाना है। AI इस प्रक्रिया को और भी सटीक बनाकर कोलोरेक्टल कैंसर की रोकथाम में सीधे तौर पर मदद करता है।
- गुणवत्ता में सुधार: AI तकनीक जांच की गुणवत्ता पर भी नजर रखती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोलोन का हर हिस्सा ठीक से जांचा गया है।
अमेरिकी गैस्ट्रोएंटरोलॉजिकल एसोसिएशन (AGA) भी AI के उपयोग पर नई गाइडलाइन्स तैयार कर रहा है, जो यह दर्शाता है कि चिकित्सा समुदाय इस तकनीक के महत्व को समझता है।

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कोलोनोस्कोपी में एआई आने से डॉक्टरों के कौशल को 20% की कमी
स्वास्थ्य क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का बढ़ता उपयोग अब चिंता का विषय बन रहा है। एक नए अध्ययन के अनुसार, कोलोनोस्कोपी जांच में एआई की सहायता से डॉक्टरों की अपनी कौशल में कमी आ रही है। पोलैंड, स्वीडन, नार्वे और अन्य यूरोपीय देशों के शोधकर्ताओं ने 1,400 से अधिक कोलोनोस्कोपी मामलों का विश्लेषण किया।

अध्ययन में पाया गया कि एआई के बिना की गई जांच में अनुभवी डॉक्टरों की ट्यूमर पहचानने की दर 20 प्रतिशत तक गिर गई। कुल 800 जांच एआई के बिना और 650 एआई की मदद से की गईं। ‘द लैंसेट गैस्ट्रोएंटरोलाजी एंड हेपेटोलाजी’ जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च से पता चला कि एआई पर निर्भरता बढ़ने से डॉक्टरों की स्वतंत्र क्षमता प्रभावित हो रही है।
कोलोनोस्कोपी बड़ी आंत और मलाशय की जांच के लिए इस्तेमाल होती है, जहां पॉलीप्स या असामान्यताओं का पता लगाया जाता है। एआई की मदद से जांच तेज होती है और एडेनोमा (गैर-कैंसरयुक्त ट्यूमर) की पहचान दर पहले 28.4 प्रतिशत से घटकर 22.4 प्रतिशत हो गई। शोधकर्ता मार्सिन रोमान्त्रिक ने कहा, “यह परिणाम चिंताजनक हैं, क्योंकि स्वास्थ्य में एआई का अपनाना तेजी से बढ़ रहा है। हमें अन्य क्षेत्रों में भी इसके प्रभाव का अध्ययन करना चाहिए।”
हालांकि, एआई के फायदे भी हैं। मेयो क्लिनिक के एक अध्ययन से पता चला कि एआई असिस्टेड कोलोनोस्कोपी से ट्यूमर मिस होने की दर 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। यह 230 मरीजों पर किए गए ट्रायल से सामने आया, जहां एआई ने छोटे पॉलीप्स की पहचान में सुधार किया। इसी तरह, येल यूनिवर्सिटी के मेटा-एनालिसिस में पाया गया कि एआई से एडेनोमा डिटेक्शन रेट बढ़ती है, लेकिन एडवांस्ड कैंसर पर प्रभाव सीमित है।
अमेरिकन गैस्ट्रोएंटरोलॉजिकल एसोसिएशन (AGA) की नई गाइडलाइंस में एआई के उपयोग पर कोई सख्त सिफारिश नहीं है, लेकिन डॉक्टरों को इसे अपनाने की सलाह दी गई है। भविष्य में रिसर्च पर जोर देते हुए कहा गया कि पेशेंट आउटकम्स पर फोकस जरूरी है। भारत में भी एआई टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ रहा है, लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि डॉक्टरों और एआई के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।
ओस्लो यूनिवर्सिटी के यूइची मोरी ने कहा कि एआई से ट्यूमर डिटेक्शन में सुधार होता है, लेकिन कौशल ह्रास के जोखिम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक ट्रेनिंग और रिसर्च से इस समस्या का समाधान संभव है।
आगे का रास्ता: संतुलन ही है समाधान
यह स्पष्ट है कि AI तकनीक स्वास्थ्य सेवा में एक दोधारी तलवार की तरह है। यह तत्काल रोगी परिणामों में सुधार कर सकती है, लेकिन लंबे समय में डॉक्टरों के कौशल के लिए एक चुनौती भी पेश कर सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि समाधान AI को पूरी तरह से खारिज करने में नहीं, बल्कि इसके साथ प्रभावी ढंग से काम करने में है। AI को एक सहायक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि मानव विशेषज्ञता के विकल्प के रूप में। भविष्य के शोध का लक्ष्य स्वास्थ्य पेशेवरों और AI प्रणालियों के बीच एक ऐसा समन्वय बनाना होगा, जिससे मरीजों को सर्वोत्तम संभव देखभाल मिल सके और डॉक्टरों का कौशल भी बना रहे।
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