विज्ञान की दुनिया में एक ऐसी क्रांति आ रही है जो इंसान के दिमाग और मशीन के बीच की दीवार को तोड़ सकती है। एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक ने हाल ही में घोषणा की कि उसने नौवें मरीज में सफलतापूर्वक ब्रेन चिप इम्प्लांट की है। Brain Reading Chip, जिसे दिमाग पढ़ने वाली चिप के नाम से जाना जा रहा है, पैरालिसिस और बोलने में असमर्थ लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है। अमेरिका में शुरू हुए इन ह्यूमन ट्रायल्स ने अब ब्रिटेन तक पहुंच बना ली है, जहां क्लिनिकल स्टडीज के लिए अनुमति मिल चुकी है।
यह अपडेट ऐसे समय में आया है जब दुनिया भर में ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) तकनीक पर तेजी से काम हो रहा है। न्यूरालिंक की यह चिप दिमाग के सिग्नल्स को पढ़कर उन्हें कंप्यूटर कमांड में बदलती है, जिससे यूजर बिना हिले-डुले डिवाइस को कंट्रोल कर सकता है। पहले मरीज नोलैंड आर्बॉ ने इस चिप की मदद से शतरंज खेला और वीडियो गेम्स में दोस्तों को हराया, जो उनकी जिंदगी में एक बड़ा बदलाव है।
Brain Reading Chip क्या है
Brain Reading Chip ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस एक ऐसी तकनीक है जो दिमाग में उठने वाले इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स को पढ़ती है और उन्हें डिजिटल कमांड में बदल देती है। जब भी हम कुछ सोचते हैं, हिलने-डुलने का इरादा करते हैं या कुछ बोलने की कोशिश करते हैं, तो हमारे दिमाग में न्यूरॉन्स खास पैटर्न में सक्रिय होते हैं। यह चिप इन्हीं सिग्नल्स को पकड़कर कंप्यूटर को निर्देश देती है, ठीक वैसे ही जैसे हम कीबोर्ड या माउस से देते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा उन लोगों को होगा जो किसी बीमारी या चोट के कारण अपने हाथ-पैर हिलाने या बोलने में असमर्थ हैं।

न्यूरालिंक की एन1 चिप एक सिक्के जितनी छोटी है, जिसमें 1,024 इलेक्ट्रोड्स वाली 64 पतली थ्रेड्स होती हैं। ये थ्रेड्स दिमाग के कोर्टेक्स में इम्प्लांट की जाती हैं, जहां से वे न्यूरॉन्स के इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स को कैप्चर करती हैं। ये सिग्नल्स ब्लूटूथ के जरिए स्मार्टफोन या कंप्यूटर तक पहुंचते हैं। 2025 में न्यूरालिंक ने चिप में अपग्रेड किए, जैसे ज्यादा इलेक्ट्रोड्स, हाई बैंडविड्थ और लंबी बैटरी लाइफ। हालांकि, शुरुआती ट्रायल्स में थ्रेड्स के पीछे हटने की समस्या आई, लेकिन कंपनी ने एल्गोरिदम में बदलाव कर इसे सुधार लिया।
यह तकनीक पुरानी बीसीआई से अलग है, क्योंकि इसमें सिर्फ सोचना काफी है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इसी तरह की दिमाग पढ़ने वाली चिप विकसित की, जो विचारों को आवाज में बदल सकती है। चार पैरालिसिस पीड़ितों पर टेस्ट में यह 74% सटीकता के साथ काम कर रही है। मशीन लर्निंग की मदद से यह इनर स्पीच को फोनीम्स में कन्वर्ट करती है।
न्यूरालिंक ने कैसे रचा इतिहास?
एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक इस रेस में सबसे आगे है। कंपनी ने इसी साल नोलैंड आर्बॉ नाम के 30 वर्षीय युवक के दिमाग में अपनी चिप लगाई, जो एक दुर्घटना के बाद कंधों के नीचे से लकवाग्रस्त हैं।
- सोच से खेला शतरंज: चिप लगने के बाद नोलैंड सिर्फ सोचकर कंप्यूटर पर शतरंज खेलने में कामयाब रहे। उन्होंने अपने विचारों का इस्तेमाल करके स्क्रीन पर कर्सर को नियंत्रित किया।
- बदल रही है जिंदगी: नोलैंड के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। सालों बाद, वह फिर से दुनिया से जुड़ने और अपने पसंदीदा वीडियो गेम खेलने में सक्षम हैं। यह सोच को आवाज में बदलने वाली तकनीक का एक जीता-जागता उदाहरण है।
हालांकि, न्यूरालिंक की चिप लगाने के लिए खोपड़ी में सर्जरी करनी पड़ती है, जो एक जटिल प्रक्रिया है।
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सिंक्रोन की स्टेंटरोड: एक वैकल्पिक तकनीक
न्यूरालिंक के अलावा, ऑस्ट्रेलियाई कंपनी सिंक्रोन की स्टेंटरोड चिप भी ध्यान खींच रही है। यह चिप स्टेंट के जरिए गर्दन की नस से दिमाग तक पहुंचाई जाती है, जिससे ब्रेन सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती। बिल गेट्स और जेफ बेजोस से फंडिंग वाली यह कंपनी एएलएस पीड़ितों को अमेजन एलेक्सा कंट्रोल करने में मदद कर रही है। 2025 में सिंक्रोन ने उत्पादन बढ़ाया और 10 मरीजों पर सफल ट्रायल्स किए। हालांकि, बैंडविड्थ कम होने से यह न्यूरालिंक जितनी तेज नहीं है, लेकिन सुरक्षित है।
भारत में भी ब्रेन चिप टेक्नोलॉजी पर काम हो रहा है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) ने ‘ब्रेन ऑन ए चिप’ विकसित किया, जो न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग पर आधारित है। यह 16,500 स्टेट्स में डेटा स्टोर और प्रोसेस कर सकता है, जो एआई हार्डवेयर को効率पूर्ण बनाएगा। यह तकनीक पर्सनल डिवाइसेज पर कॉम्प्लेक्स टास्क्स को संभव बनाएगी
क्या मैदान में कोई और भी है? Synchron की नई पहल
न्यूरालिंक इस क्षेत्र में अकेली कंपनी नहीं है। Synchron नाम का एक ऑस्ट्रेलियाई स्टार्टअप भी बेहतरीन काम कर रहा है, जिसे बिल गेट्स और जेफ बेजोस जैसे दिग्गजों से फंडिंग मिली है।
Synchron की Stentrode चिप की खास बात यह है कि इसे लगाने के लिए ओपन-ब्रेन सर्जरी की जरूरत नहीं होती। इसे गर्दन की नस के जरिए दिमाग तक पहुंचाया जाता है, जो इसे काफी सुरक्षित बनाता है। यह तकनीक भी मरीजों को स्मार्टफोन और अन्य डिवाइस को सिर्फ दिमाग से कंट्रोल करने की ताकत दे रही है।
ब्रेन चिप टेक्नोलॉजी: भविष्य की संभावनाएं और बड़े सवाल
इस ब्रेन चिप टेक्नोलॉजी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है, लेकिन यह अपने साथ कुछ गंभीर नैतिक सवाल भी खड़े करती है।
- लकवा, ALS और अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए क्रांतिकारी साबित होगी।
- हम सिर्फ सोचकर स्मार्टफोन, स्मार्ट होम डिवाइस और रोबोट को कंट्रोल कर पाएंगे।
- मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे डिप्रेशन और मिर्गी के इलाज में मदद मिल सकती है।
- प्राइवेसी का सवाल: क्या कंपनियां हमारे निजी विचारों को पढ़ सकेंगी? इस डेटा का मालिक कौन होगा और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाएगा?
- सुरक्षा का खतरा: क्या इन चिप्स को हैक किया जा सकता है? गलत हाथों में यह तकनीक खतरनाक साबित हो सकती है।
- डेटा का दुरुपयोग: क्या आपके विचारों के आधार पर आपको विज्ञापन दिखाए जाएंगे या आपकी निगरानी की जाएगी?
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निष्कर्ष
Neuralink का भविष्य और ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस टेक्नोलॉजी निस्संदेह मानवता के लिए एक बड़ी छलांग है। यह लाखों लोगों को एक नई जिंदगी दे सकती है और हमारे जीने का तरीका बदल सकती है। लेकिन इस शक्ति के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी आती है। सरकारों और कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तकनीक का इस्तेमाल नैतिक और सुरक्षित तरीके से हो, ताकि हमारी प्राइवेसी और स्वतंत्रता बनी रहे।
यह तकनीक अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन एक बात तो तय है – भविष्य आ चुका है, और यह हमारी सोच से भी ज्यादा तेज है।
