भारत का न्यायिक तंत्र अब Artificial Intelligence (AI) की मदद से डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन की दिशा में बड़ा कदम उठा चुका है। न्यायिक प्रक्रियाओं को तेज़, पारदर्शी और अधिक सुलभ बनाने के लिए अब अदालतों में AI tools और automation systems का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। AI in Judiciary India केरल उच्च न्यायालय ने न्याय प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का बड़ा उपयोग शुरू किया है। 1 नवंबर से राज्य की सभी अदालतें गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए ‘अदालत.AI’ नामक स्पीच-टू-टेक्स्ट टूल का इस्तेमाल करेंगी। इससे पहले ये बयान जजों द्वारा हाथ से लिखे जाते थे या स्टेनोग्राफर टाइप करते थे, जो समय लेने वाला था।
हाईकोर्ट के निर्देशानुसार, बयान रिकॉर्ड होने के बाद जिला कोर्ट केस मैनेजमेंट सिस्टम (DCMS) पर अपलोड हो जाएगा। इससे वकील और पक्षकार अपने डैशबोर्ड से आसानी से एक्सेस कर सकेंगे। इसकी शुरुआत फरवरी में एर्नाकुलम की चार ट्रायल कोर्ट में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हुई थी, जहां सकारात्मक नतीजे मिले। अब पूरे राज्य में इसे अनिवार्य किया गया है। प्रत्येक जिले में नोडल अधिकारी मासिक रिपोर्ट देंगे।
व्हाट्सएप नोटिफिकेशन से और आसान होगी प्रक्रिया
6 अक्टूबर से हाईकोर्ट केस मैनेजमेंट सिस्टम में व्हाट्सएप अलर्ट की सुविधा शुरू हो रही है। यह केवल अपडेट के लिए होगा, आधिकारिक समन का विकल्प नहीं। कोर्ट ने फर्जी मैसेज से सावधान रहने की सलाह दी है। support@adalat.ai पर ट्रेनिंग या समस्या के लिए संपर्क किया जा सकता है।
दिल्ली HC में AI का ‘हैलुसिनेशन’ उजागर
दूसरी ओर, दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका वापस लेनी पड़ी क्योंकि उसमें AI से जेनरेटेड फर्जी केस लॉ का हवाला दिया गया था। ग्रीनोपोलिस वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के गढ़े हुए पैराग्राफ उद्धृत थे, जो अस्तित्व में ही नहीं थे। रिस्पॉन्डेंट वकीलों ने आपत्ति जताई। जस्टिस ने ‘उपयुक्त कदम’ उठाने का संकेत दिया।
यह मामला AI in judiciary India के जोखिमों को रेखांकित करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि AI टूल्स जैसे चैटजीपीटी फर्जी जानकारी दे सकते हैं, जो वकीलों के लिए शर्मिंदगी का सबब बन सकता है। AI for case law research में सावधानी बरतने की जरूरत है।
ई-कोर्ट्स फेज III: AI से न्याय व्यवस्था का डिजिटल रूपांतरण
केंद्र सरकार ने ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट फेज III के लिए 7,210 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिसमें AI और ब्लॉकचेन पर 53.57 करोड़ खर्च होंगे। यह प्रोजेक्ट केस मैनेजमेंट, लीगल रिसर्च और प्रेडिक्टिव एनालिसिस में AI का उपयोग करेगा। मशीन लर्निंग से केस प्रायोरिटी तय होगी, NLP से जजमेंट समरी बनेगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “तकनीक पुलिस, फॉरेंसिक, जेल और कोर्ट को जोड़ेगी, न्याय को भविष्य-सिद्ध बनाएगी।” AI-assisted legal translation से भाषा बाधा दूर होगी, खासकर हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में।

सुप्रीम कोर्ट का संतुलित नजरिया
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने कहा, “AI न्याय का सहायक बने, लेकिन मानव बुद्धि और भावनाओं की जगह न ले।” नैरोबी में बोलते हुए उन्होंने AI के पूर्वाग्रहों और फर्जी साइटेशन के खतरे पर चिंता जताई। उन्होंने लाइव स्ट्रीमिंग के दुरुपयोग पर भी गाइडलाइंस की मांग की।
AI का बढ़ता प्रभाव: लाभ और चुनौतियाँ
केरल की इस पहल के साथ ही भारत में न्यायपालिका में AI (AI in judiciary) का उपयोग एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने भी कहा है कि AI को एक सहायक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए, न कि मानव निर्णय का विकल्प। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि AI से पैदा होने वाले फेक केस लॉ और गलत जानकारियों के प्रति सतर्क रहना जरूरी है। दिल्ली हाई कोर्ट में हाल ही में एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जहां एक वकील ने AI द्वारा बनाए गए काल्पनिक केस लॉ का हवाला दिया था, जिसे बाद में याचिका वापस लेनी पड़ी।

केंद्र सरकार ने भी ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट फेज III के लिए ₹7210 करोड़ का बजट आवंटित किया है, जिसमें AI और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों के लिए ₹53.57 करोड़ का विशेष प्रावधान है। इसका उद्देश्य केस प्रबंधन को सुधारना, कानूनी शोध में सहायता करना, और न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना है।
अमेरिका में ओपनAI, स्टेबिलिटी AI पर कॉपीराइट उल्लंघन के केस चल रहे हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट ने आशा भोसले के मामले में AI वॉयस क्लोनिंग को पर्सनालिटी राइट्स का उल्लंघन माना, इंटरिम राहत दी। भारत में genai case law और copyright ai case law बढ़ रहे हैं।
भविष्य की राह
AI भारतीय न्याय प्रणाली में दक्षता और पारदर्शिता लाने की क्षमता रखता है। चाहे वह दस्तावेजों का डिजिटलीकरण हो, कानूनी अनुवाद हो, या फिर पुलिसिंग और अपराध की भविष्यवाणी हो, तकनीक एक मजबूत और नागरिक-केंद्रित न्यायिक प्रणाली बनाने में मदद कर सकती है। हालांकि, इसके साथ ही डेटा सुरक्षा, कानूनी सुधार और मानवाधिकारों से जुड़े नैतिक पहलुओं पर भी विशेष ध्यान देना होगा।
निष्कर्ष: फायदे और सावधानियां
Use of AI in judiciary से केस बैकलॉग कम होगा, पहुंच आसान बनेगी। लेकिन ethical governance, डेटा सिक्योरिटी जरूरी। role of AI in judiciary सहायक की रहे, मानव निर्णय प्रधान। benefits of AI in judiciary जैसे judicial efficiency से न्याय जल्दी मिलेगा, बशर्त सतर्कता बरती जाए।